Sunday, December 25, 2011

कब दुनिया को हिन्दु करने घर घर मे नरसंहार किया

आजच्याच दिवशी सन १९२४ रोजी श्री अटल बिहारी वाजपेयी यांचा जन्म झाला होता. उत्तर प्रदेशाला कर्मभूमी बनविलेले वाजपेयी आज वृद्धापकाळामुळे राजकारणातून निवृत्त झाले असले तरी त्यांची मोहिनी देशवासीयांवर आजही पाहायला मिळते.

ही गोष्ट १९५७ ची आहे. दुस-या लोकसभेत भारतीय जनसंघाचे केवळ ४ खासदार होते. या खासदारांची ओळख तत्कालीन राष्ट्रपती डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन यांच्याशी करून देण्यात आली. तेंव्हा राष्ट्रपती अचंबित झाले, कारण भारतीय जन संघ नावाचा पक्ष असल्याची त्यांना माहितीच नव्हती. त्या चार खासदारांत अटल बिहारी वाजपेयी हे एक होते.
ही गोष्ट आठवून अटलजी भारतीय जनता पक्षाच्या प्रगतीकडे दिशानिर्देश करीत असत. भारतीय जनता पक्षाला प्रमुख पक्ष बनविण्यात त्यांचे मोलाचे योगदान होते. त्यांची पंतप्रधान म्हणूनही कारकीर्द विशेष गाजली. त्यांचा जीवनप्रवास हा खूपच तेजस्वी आहे. सुरुवातीच्या काळात तेंव्हाचे पंतप्रधान जवाहर लाल नेहरू एकदा म्हणाले होते, 'आम्ही जनसंघाला चिरडून टाकू'. त्यावर अटल बिहारी वाजपेयी यांनी ठामपणे प्रत्युत्तर दिले होते, 'आम्ही चिरडून टाकण्याची मानसिकताच चिरडून टाकू इच्छितो.'

भारतीय जनता पक्षाचा उल्लेख 'जातीयवादी पक्ष' म्हणून होणे, अटल बिहारी वाजपेयी यांना मान्य नव्हते. 'अटलजी ही चांगली व्यक्ती चुकीच्या पक्षात आहे', असे म्हटले जायचे. त्यावर अटलजी यांचे उत्तर असे की, 'झाडाची परीक्षा ही फळावरून होत असते. फळ चांगले आहे पण झाड नाही, असे म्हणणे कृतघ्नपणा नाही का ?'
हिंदू धर्माच्या सर्वसमावेशकतेविषयी त्यांच्या मनात काय विचार होते, हे त्यांच्या पुढील कवितेतून पाहायला मिळतात. अटलजी १६ वर्षांचे असताना लिहितात,

हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥
मै शंकर का वह क्रोधानल कर सकता जगती क्षार क्षार
डमरू की वह प्रलयध्वनि हूं जिसमे नचता भीषण संहार
रणचंडी की अतृप्त प्यास मै दुर्गा का उन्मत्त हास
मै यम की प्रलयंकर पुकार जलते मरघट का धुँवाधार
फिर अंतरतम की ज्वाला से जगती मे आग लगा दूं मै
यदि धधक उठे जल थल अंबर जड चेतन तो कैसा विस्मय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

मै आज पुरुष निर्भयता का वरदान लिये आया भूपर
पय पीकर सब मरते आए मै अमर हुवा लो विष पीकर
अधरोंकी प्यास बुझाई है मैने पीकर वह आग प्रखर
हो जाती दुनिया भस्मसात जिसको पल भर मे ही छूकर
भय से व्याकुल फिर दुनिया ने प्रारंभ किया मेरा पूजन
मै नर नारायण नीलकण्ठ बन गया न इसमे कुछ संशय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

मै अखिल विश्व का गुरु महान देता विद्या का अमर दान
मैने दिखलाया मुक्तिमार्ग मैने सिखलाया ब्रह्म ज्ञान
मेरे वेदों का ज्ञान अमर मेरे वेदों की ज्योति प्रखर
मानव के मन का अंधकार क्या कभी सामने सकठका सेहर
मेरा स्वर्णभ मे गेहर गेहेर सागर के जल मे चेहेर चेहेर
इस कोने से उस कोने तक कर सकता जगती सौरभ मै
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

मै तेजःपुन्ज तम लीन जगत मे फैलाया मैने प्रकाश
जगती का रच करके विनाश कब चाहा है निज का विकास
शरणागत की रक्षा की है मैने अपना जीवन देकर
विश्वास नही यदि आता तो साक्षी है इतिहास अमर
यदि आज देहलि के खण्डहर सदियोंकी निद्रा से जगकर
गुंजार उठे उनके स्वर से हिन्दु की जय तो क्या विस्मय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

दुनिया के वीराने पथ पर जब जब नर ने खाई ठोकर
दो आँसू शेष बचा पाया जब जब मानव सब कुछ खोकर
मै आया तभि द्रवित होकर मै आया ज्ञान दीप लेकर
भूला भटका मानव पथ पर चल निकला सोते से जगकर
पथ के आवर्तोंसे थककर जो बैठ गया आधे पथ पर
उस नर को राह दिखाना ही मेरा सदैव का दृढनिश्चय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

मैने छाती का लहु पिला पाले विदेश के सुजित लाल
मुझको मानव मे भेद नही मेरा अन्तःस्थल वर विशाल
जग से ठुकराए लोगोंको लो मेरे घर का खुला द्वार
अपना सब कुछ हूं लुटा चुका पर अक्षय है धनागार
मेरा हीरा पाकर ज्योतित परकीयोंका वह राज मुकुट
यदि इन चरणों पर झुक जाए कल वह किरिट तो क्या विस्मय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

मै वीरपुत्र मेरि जननी के जगती मे जौहर अपार
अकबर के पुत्रोंसे पूछो क्या याद उन्हे मीना बझार
क्या याद उन्हे चित्तोड दुर्ग मे जलनेवाली आग प्रखर
जब हाय सहस्त्रो माताए तिल तिल कर जल कर हो गई अमर
वह बुझनेवाली आग नही रग रग मे उसे समाए हूं
यदि कभि अचानक फूट पडे विप्लव लेकर तो क्या विस्मय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

होकर स्वतन्त्र मैने कब चाहा है कर लूं सब को गुलाम
मैने तो सदा सिखाया है करना अपने मन को गुलाम
गोपाल राम के नामोंपर कब मैने अत्याचार किया
कब दुनिया को हिन्दु करने घर घर मे नरसंहार किया
कोई बतलाए काबुल मे जाकर कितनी मस्जिद तोडी
भूभाग नही शत शत मानव के हृदय जीतने का निश्चय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

मै एक बिन्दु परिपूर्ण सिन्धु है यह मेरा हिन्दु समाज
मेरा इसका संबन्ध अमर मै व्यक्ति और यह है समाज
इससे मैने पाया तन मन इससे मैने पाया जीवन
मेरा तो बस कर्तव्य यही कर दू सब कुछ इसके अर्पण
मै तो समाज की थाति हूं मै तो समाज का हूं सेवक
मै तो समष्टि के लिए व्यष्टि का कर सकता बलिदान अभय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

( अटलजींची ही कविता म्हणजे त्यांचे जीवन विचार आहेत... )

No comments:

Post a Comment

.

.
.

siddharam patil photo

siddharam patil photo

लेखांची वर्गवारी